शुक्रवार को भारत की प्रमुख सोलर कंपनियों Waaree Energies और Premier Energies के शेयरों में अचानक जोरदार गिरावट देखने को मिली। इस गिरावट की सीधी वजह अमेरिका में क्लीन एनर्जी सेक्टर को लेकर एक नए टैक्स बिल के पास होने से जुड़ी है, जिसे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का समर्थन प्राप्त है। इस फैसले का असर सिर्फ अमेरिकी कंपनियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका सीधा असर भारतीय कंपनियों के शेयर बाजार में भी दिखा।

अमेरिका के नए बिल से मची हलचल
अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में एक नया टैक्स बिल पास किया गया है, जिसमें बाइडेन सरकार की ग्रीन एनर्जी नीतियों को कमजोर करने वाले कई प्रस्ताव शामिल हैं। इस बिल के तहत 30% की वह टैक्स क्रेडिट जो सोलर रूफटॉप सिस्टम लगाने वालों को मिलती थी, उसे खत्म किया जा रहा है। इसके अलावा एयर पॉल्यूशन और ग्रीनहाउस गैसों को कम करने वाली ग्रांट्स और इलेक्ट्रिक हेवी-ड्यूटी व्हीकल्स की खरीद पर मिलने वाली सब्सिडी को भी हटाने का प्रस्ताव है। यह बिल बेहद मामूली बहुमत (215-214) से पास हुआ है और अब इसे अमेरिकी सीनेट में भेजा जाएगा। इस बिल के पास होते ही अमेरिका की सोलर कंपनियों में भारी बिकवाली शुरू हो गई, जिसमें Sunrun और NextEra Energy जैसी दिग्गज कंपनियों के शेयर 7% से लेकर 37% तक गिर गए।
भारत की कंपनियों पर क्यों पड़ा असर?
अमेरिका में हुए इस घटनाक्रम का सीधा असर भारत की सोलर कंपनियों पर भी पड़ा है, खासकर उन कंपनियों पर जिनका बड़ा हिस्सा अंतरराष्ट्रीय बाजारों से आता है। Waaree Energies के शेयर 11% गिरकर ₹2,666 तक पहुंच गए, जबकि Premier Energies के शेयर 6% गिरकर ₹1,017.5 हो गए। Waaree Energies की कुल ऑर्डर बुक ₹47,000 करोड़ तक की है, जिसमें से लगभग 57% ऑर्डर सिर्फ एक्सपोर्ट से जुड़े हुए हैं। अमेरिका की पॉलिसी में आए इस बड़े बदलाव से निवेशकों को यह डर सताने लगा है कि कहीं यह कंपनियां अपने बड़े विदेशी ऑर्डर गंवा न दें या वहां की डिमांड में भारी गिरावट न आ जाए।
निवेशकों के बीच बढ़ी चिंता
भारतीय निवेशक अब सतर्क हो गए हैं। उन्हें यह एहसास हो गया है कि सोलर और क्लीन एनर्जी कंपनियों में निवेश सिर्फ उनके ऑर्डर बुक और फंडामेंटल्स पर आधारित नहीं हो सकता, बल्कि वैश्विक घटनाओं का भी बड़ा असर होता है। अमेरिका जैसे देश में अगर ग्रीन एनर्जी सब्सिडी में कटौती होती है तो वहां की डिमांड गिर सकती है और इसका सीधा असर भारत की सोलर कंपनियों पर पड़ेगा। निवेशकों को अब यह सोचना होगा कि वैश्विक नीतियों के बदलते स्वरूप के बीच जोखिम को कैसे संतुलित किया जाए।
क्या आगे और गिरावट संभव है?
फिलहाल तो बाजार में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। यदि अमेरिकी सीनेट इस बिल को पास कर देता है, तो यह सोलर सेक्टर के लिए एक और बड़ा झटका हो सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोलर प्रॉजेक्ट्स की लागत बढ़ सकती है, जिससे Waaree और Premier Energies जैसी कंपनियों के लिए नए ऑर्डर हासिल करना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, यह भी संभव है कि सीनेट में विरोध के चलते यह बिल अटक जाए। तब तक, भारतीय कंपनियों और निवेशकों दोनों को सतर्क रहना होगा और वैश्विक संकेतों पर नज़र बनाए रखनी होगी।
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